kabit कबीट
छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है। छोटे की अपेक्षा बड़े आकार का फल मीठा होता है जबकि छोटा खट्टा व कसैला होता है। इसको चटनी बनाकर खाई जाती है या मीठा शर्बत बनाकर पिया जाता है।

कबीट (Kabit) | 1 गुणकारी फल

कबीट (Kabit)

कबीट का वृक्ष सारे भारत में उत्पन्न होता है और बहुत ऊंचा व बड़ा होता है। इसका फूल बेल (बिल्व) की तरह होता है, छिलका सफेद और सख्त होता है। इसके गूदे में बहुत बीज होते है।

यह स्वाद में खट्टा और कसेला होता है। इसका उपयोग ज्यादा प्रचलित नहीं है। 

भावप्रकाश निघण्टु में लिखा है

कपित्तमाम संग्राहि कषाय लघु लेखनम।

पक्वम गुरु तृषा हिक्का शमनं वात पित्तजित् ।।   

स्वादवमलम तुवरम कण्ठशोधनं ग्राहि दुर्जरम्।

कबीट के अन्य नाम 

कबीट को अलग अलग भाषाओं इसके अलग अलग नाम है

संस्कृत में इसे कपित्थ, हिंदी में कबीट या कैथ कहते है। मराठी में इसे कंवठ नाम से पुकार जाता है ।गुजराती, फारसी में कबीट ही कहते है ।

बंगाली में इसे कयेथ कहते है। कन्नड़ में वेललु कहा जाता है, वही तेलुगु एलांगकाय तो तमिल में बलामरकहते है। अंग्रेजी में वुड एप्पल व लैटिन में फैरोनिया एलिफेंटम कहते है।

कबीट के गुण

 कच्चा कबीट ग्राही, कसैला, हल्का होता है। पका हुआ भारी तथा प्यास, हिचकी, वात और पित्त को नष्ट करने वाला है। यह स्वाद में खट्टा व कसैला है। कण्ठ को शुद्ध करता है लेकिन स्वर को हानि पहुंचाता है। 

सुश्रुतु संहिता सूत्रस्थान अध्याय ४६ श्लोक १४७- १४८ में कहा है

यह कसैला, मधुर रस युक्त, दस्त बांधने वाला तथा ठण्डा होता है।

कच्चा फल स्वर को हानि पहुंचाने वाला, कफ नाशक, दस्त बांधने वाला, वात नाशक तथा पका फल मधुर अम्ल रस वाला, भारी, श्वास, खांसी और अरुचिनाशक, प्यासशामक एवं कण्ठ साफ़ करने वाला होता है।

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कबीट के उपयोग

इसका उपयोग हाथी बड़े चमत्कारपूर्ण ढंग से करता है वह इसे साबित निगल जाता है और साबित ही मल के साथ बाहर निकाल देता है 

लेकिन कमाल इस बात का है कि उसके अन्दर का गूदा हाथी के पेट में रह जाता है छिलके की खाली खोल क्रिकेट की गेंद की तरह बिना टूटे फूटे बाहर आ जाती है। 

यह छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है। छोटे की अपेक्षा बड़े आकार का फल मीठा होता है जबकि छोटा खट्टा व कसैला होता है।

इसको चटनी बनाकर खाई जाती है या मीठा शर्बत बनाकर पिया जाता है। इसके गुण बेल फल से मिलते जुलते हैं।

रक्तपित्त, अतिसार तथा प्रवाहिका (डायरिया और डीसेन्ट्री) रोग में इसके गूदे का सेवन करने से लाभ होता है। 

इसके गूदे का शर्बत बना कर पीने से बड़ी उम्र के स्त्री पुरुषों एवं बच्चों को पेट दर्द में लाभ होता है। इसके पत्तों का रस भी हिचकी, उल्टी और अतिसार में फायदा करता है।

इसके पके गूदे का सेवन करने से गले और मसूढ़ों को लाभ पहुंचता है। इसके पतों का रस त्वचा पर लगाने से शीत पित्ती के ददोड़े ठीक होते हैं।

इसके पत्तों का चूर्ण ५. श्रम मात्रा में कुछ दिन प्रातः काल मिश्री मिले दूध के साथ लेने से अतिउष्णता के कारण होने वाला धातु स्राव और स्वपनदोष रोग ठीक होता है।

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